आहार
हमारे एक कवि मित्र
अपने दिमाग की उपज पर
इतरा रहे हैं 1
वे कहते हैं --
हम मेहनत की
कमाई खा रहे हैं 1
दिन मैं कई होटलों के
चक्कर लगते हैं 1
उनसे आहार का
नमूना मांग लातें हैं 1
इकठा किये गए
नमूनों को ही
आहार बना रहे हैं.
राम कृष्ण खुराना
ए - 426 , मॉडल town extension
लुधिआना
(पंजाब)
भारत
Friday, March 12, 2010
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