R K KHURANA

Friday, March 12, 2010

आहार

हमारे एक कवि  मित्र
अपने दिमाग की उपज पर
इतरा रहे हैं 1

वे कहते हैं --
हम मेहनत  की
कमाई खा रहे हैं 1

दिन मैं कई होटलों के
चक्कर लगते हैं 1

उनसे आहार का
नमूना मांग लातें हैं 1

इकठा किये गए
नमूनों को ही
आहार बना रहे हैं.

राम कृष्ण खुराना
ए - 426 , मॉडल town  extension
लुधिआना
(पंजाब)
भारत

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