R K KHURANA

Tuesday, April 6, 2010

अभी तो मैं जवान हूं

अभी तो मैं जवान हूं








पता नहीं आजकल के छोकरों को क्या हो गया है ? बूढों को कुछ समझते ही नहीं ! एक जमाना था कि लोग बुजुर्गों को ढोल में बन्द करके साथ ले जाते थे ! पहले लोग कहा करते थे कि सयाने आदमी की बात भी सयानी होती है ! प्रत्येक कार्य को करने से पहले दस बार बूढों की सलाह ली जाती थी ! किसी बुजुर्ग के कहे गये वाक्य को लोग अमरित समझ कर पी जाते थे ! क्या मजाल की बडे-बूढों की इच्छा के विरुध कोइ पत्ता भी हिल जाय !







आखिर इन युवकों को हमने ही तो पैदा किया है ! हमने ही तो पाला-पोसा और युवा कहलाने योग्य बडा किया है ! क्या हुआ जो जरा सी हमारी कमर टेढी हो गई ? क्या हुआ अगर हमारे बाल सफेद हो गये, आंखे अन्दर को धंस गई और गाल पिचक गये ? दिल तो जवान है ! उदय भानु हंस ने भी कहा है –



तुम प्रेम को जीवन की निशानी समझो,



जो बह्ता रहे उसको ही पानी समझो !



जब ह्रदय बुढापे में भी रंगीन रहे,



तुम ऐसे बुढापे को जवानी समझो !!







वैसे भी हम जवानों से किसी बात में कम नहीं ! इन लोगों से अधिक स्कैन्ड्ल करने का हमें अनुभव है ! आज कल के इन छ्छुन्दर मुंहे लोगों से अधिक हमने सुरा व सुन्दरी के साथ रातें रंगीन की हैं ! लोगों से ली गई रिश्वत से स्विट्ज़रलैंड के बैंको में हमारे खाते अभी तक चल रहे हैं ! परंतु इन छोकरों को तो इन कुकर्मों को दबाने व छिपाने की भी अकल नहीं है ! हम भी यह सब काम करते थे पर क्या मज़ाल कि किसी को कानो-कान खबर भी हो जाए ! क्योंकि –







है पाप अगर पाप को प्रत्यक्श करे,



परदे में किया गया पाप कोई पाप नहीं !







परंतु आजकल तो हवा ही उल्टी चल गई है ! हर जगह युवकों की ही बात हो रही है ! चुनाव में टिकट दो तो युवा को ! मंत्री पद दो तो युवा को ! नेत्रित्व दो तो युवा को ! युवा ना हो गये मथुरा के पेडे हो गये ! लेकिन इन युवाओं को “युवा-ह्रदय और युवा-सम्राट की उपाधि देकर हमीं ने बिगाडा है ! जब यह युवा हवाई-जहाज पर चढने लगते हैं तो बूढे युवकों के पैरों की तरफ ताकते नीचे खडे हो जाते हैं कि कब इन युवायों की चप्पल गिरे और कब हम दौड कर उसे उठाकर पकडाने का सौभाग्य प्राप्त करें ! हम बुढों ने ही इन्हें बिगाडा है !







देर आयद दुरस्त आयद ! अब हम भी सम्भल गये हैं ! हमने भी घाट-घाट का पानी पिया है ! हमने जीवन के 70 पतझड देखे हैं ! जय प्रकाश नारायण भी तो 70 साल के युवा थे ! जिन्होंने सारे युवाओं को चूहों की तरह अपने पीछे लगा लिया था ! अतह -



बच के वार करना मुझ पर मैं भी तीर कमान हूं ,



सत्तर का हुआ तो क्या हुआ, अभी तो मैं जवान हूं !

कस्टमर फीडबैक

कस्टमर फीडबैक




आजकल मार्केटिंग का जमाना है ! जीवन के हर क्षेत्र में मार्केटिंग है ! यहाँ तक कि प्रेम और विवाह के मामले में भी ! आईये, एक स्तिथि कि कल्पना करते हैं ! मान लीजिये आप पार्टी में एक खूबसूरत युवती को देखते हैं ! इसके बाद मार्केटिंग कि शब्दावली में आप क्या-क्या कर सकते हैं ! –



१. आप उसके पास जाकर कहते हैं, “मैं बहुत अमीर हूँ, मुझसे शादी करोगी ?

यह सीधी मार्केटिंग है !

२. आपका एक दोस्त उसके पास जाकर आपकी ओर इशारा करते हुए कहता है कि “वो बहुत अमीर है उससे शादी कर लो !

यह विज्ञापन है !

३. आप उस युवती के पास जाते हैं और उसका फ़ोन नंबर लेकर अगली सुबह उसे फ़ोन करते हैं -

“हाई, मैं एक अमीर आदमी हूँ, मुझसे शादी करोगी ?”

यह टेल्ली मार्केटिंग है !

४. आप उसके पास जाकर उसके बालों की तारीफ करते हैं, उसके लिए कुर्सी खींचते हैं, और कहते हैं, :

बाई द वे मैं एक अमीर शख्स हूँ, मुझसे शादी करोगी ?

यह पब्लिक रिलेशन है !

५. वह युवती ही आपके पास आकर कहती है, ” आप वही अमीर आदमी हैं न, जिनके बड़े चर्चे हैं !

यह ब्रांड वैल्यू है !

६. आप उस युवती से सीधे पूछते हैं, “मैं बहुत अमीर हूँ, क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?” और वह आपकी गाल पर एक तमाचा जड़ देती है !

यह कस्टमर फीडबैक है !



दैनिक भास्कर में पढ़ा ! स्वादिस्ट (अच्छा) लगा ! सोचा ब्लॉगर-भईयों को भी परोस दूं !

क्षण बोध

क्षण बोध


जब मैं दूसरी कक्षा में हुआ तो मेरे भाई साह्ब ने पांचवीं पास कर ली थी ! मुझे आष्चर्य-सा होता था कि यह इतनी किताबें किस प्रकार से पढ लेते हैं ! और पास भी हो जाते हैं ! प्रायः मैं भाई साहब से पूछा करता था –“ भईया, आप इतनी किताबें कैसे पढ लेते हो ?” तो भाई साहब बडे प्यार से कहते, “घबरा मत जब तू बडा होगा तो यही किताबें पढा करेगा !”

मैंने पांचवीं कक्षा में सबसे अधिक अंक लिये ! उस समय मैं मैट्रिक करने वालों को जादूगर समझा करता था ! एक दिन मैंने एक त्रितिय श्रेणी मैट्रिक पास पडोसी से पूछा – “आपने दसवीं कैसे पास करली ? इसके लिये तो बहुत पढना पडता होगा ?”

“और नहीं तो क्या ?” पडोसी ने इतराते हुये जवाब दिया !

मैट्रिक मैने खेल्-खेल में पास कर ली ! मैंने एक सज्जन से इसका सगर्व जिक्र किया ! पहले तो वो मुझे एकटक इस प्रकार से देखते रहे जैसे कि मेरे दिमाग की कोइ चूल ढीली हो गई है ! फिर कदाचित मेरी बुद्धी पर तरस खाकर बोले – “ तो तुमने कौन सा तीर मार लिया ? आजकल मैट्रिक पास की वैल्यू ही क्या है ?”

मैने आव देखा न ताव, झट से कालेज में प्रवेश ले लिया ! तब मैं भी यह समझने लगा था कि वास्तव में मैट्रिक में कुछ नहीं था ! अब बी. ऐ. करेंगे तो पता चलेगा !



बी. ऐ. का प्रथम श्रेणी का प्रमाण पत्र मिलने के बाद मेरे दिल में यह विश्वास हो गया कि अब मुझे अपने माता-पिता पर बोझ बनने की आवश्यकता नहीं ! परंतु यह हवा महल भी एक इंटरव्यू में एक ही वाक्य से ढह गया ! “बी.ऐ. पास तो आजकल धक्के खाते फिर रहे हैं ! हां यदि तुम एम.ऐ., बी.एड. होते तो शायद बात बन जाती ! “

मैंने एम.ऐ. और बी.एड. का लेबल भी लगा लिया ! नौकरी के लिये चक्कर लगाते-लगाते जूते के निचले भाग में सूराख हो जाने के कारण उसमें से सारी दुनिया नज़र आती है ! आज टेबल पर सारी डिग्रीयां बिखरी पडी हैं ! जब पीछे मुड कर देखता हूं तो सोचता हूं कि इस पढाई में कुछ भी नहीं था ! आज मुझे दु:ख हो रहा है कि अपने जीवन के इतने बहुमूल्य वर्ष ऐसे ही गंवा दिये ! यदि एम.ऐ., बी.एड. का ठप्पा न लगा होता तो कम से कम बूट पालिश करके या रिक्शा चला कर अपने पेट की आग तो शांत कर सकता था !

अभी तो मैं जवान हूं

अभी तो मैं जवान हूं



पता नहीं आजकल के छोकरों को क्या हो गया है ? बूढों को कुछ समझते ही नहीं ! एक जमाना था कि लोग बुजुर्गों को ढोल में बन्द करके साथ ले जाते थे ! पहले लोग कहा करते थे कि सयाने आदमी की बात भी सयानी होती है ! प्रत्येक कार्य को करने से पहले दस बार बूढों की सलाह ली जाती थी ! किसी बुजुर्ग के कहे गये वाक्य को लोग अमरित समझ कर पी जाते थे ! क्या मजाल की बडे-बूढों की इच्छा के विरुध कोइ पत्ता भी हिल जाय !



आखिर इन युवकों को हमने ही तो पैदा किया है ! हमने ही तो पाला-पोसा और युवा कहलाने योग्य बडा किया है ! क्या हुआ जो जरा सी हमारी कमर टेढी हो गई ? क्या हुआ अगर हमारे बाल सफेद हो गये, आंखे अन्दर को धंस गई और गाल पिचक गये ? दिल तो जवान है ! उदय भानु हंस ने भी कहा है -- तुम प्रेम को जीवन की निशानी समझो, जो बह्ता रहे उसको ही पानी समझो ! जब ह्रदय बुढापे में भी रंगीन रहे, तुम ऐसे बुढापे को जवानी समझो !!



वैसे भी हम जवानों से किसी बात में कम नहीं ! इन लोगों से अधिक स्कैन्ड्ल करने का हमें अनुभव है ! आज कल के इन छ्छुन्दर मुंहे लोगों से अधिक हमने सुरा व सुन्दरी के साथ रातें रंगीन की हैं ! लोगों से ली गई रिश्वत से स्विट्ज़रलैंड के बैंको में हमारे खाते अभी तक चल रहे हैं ! परंतु इन छोकरों को तो इन कुकर्मों को दबाने व छिपाने की भी अकल नहीं है ! हम भी यह सब काम करते थे पर क्या मज़ाल कि किसी को कानो-कान खबर भी हो जाए ! क्योंकि --

है पाप अगर पाप को प्रत्यक्श करे, परदे में किया गया पाप कोई पाप नहीं !

परंतु आजकल तो हवा ही उल्टी चल गई है ! हर जगह युवकों की ही बात हो रही है ! चुनाव में टिकट दो तो युवा को ! मंत्री पद दो तो युवा को ! नेत्रित्व दो तो युवा को ! युवा ना हो गये मथुरा के पेडे हो गये ! लेकिन इन युवाओं को “युवा-ह्रदय और युवा-सम्राट की उपाधि देकर हमीं ने बिगाडा है ! जब यह युवा हवाई-जहाज पर चढने लगते हैं तो बूढे युवकों के पैरों की तरफ ताकते नीचे खडे हो जाते हैं कि कब इन युवायों की चप्पल गिरे और कब हम दौड कर उसे उठाकर पकडाने का सौभाग्य प्राप्त करें ! हम बुढों ने ही इन्हें बिगाडा है !



देर आयद दुरस्त आयद ! अब हम भी सम्भल गये हैं ! हमने भी घाट-घाट का पानी पिया है ! हमने जीवन के 70 पतझड देखे हैं ! जय प्रकाश नारायण भी तो 70 साल के युवा थे ! जिन्होंने सारे युवाओं को चूहों की तरह अपने पीछे लगा लिया था ! अतह - बच के वार करना मुझ पर मैं भी तीर कमान हूं , सत्तर का हुआ तो क्या हुआ, अभी तो मैं जवान हूं !

आदमी की पूंछ

आदमी की पूंछ


जब से मैने सुना है कि कलकत्ता के राम कृष्ण मिशन अस्पताल में एक पूंछ वाले बच्चे ने जन्म लिया है तब से मैं बहुत खुश हूं ! हमारे पूर्वजों की भी पूंछ हुआ करती थी ! डाक्टरों का कहना है कि जब एक-डेढ महीने का भ्रूण पेट में होता है तो उसकी भी पूंछ होती है ! और नौ महीने बीतते-बीतते वह पूंछ समाप्त हो जाती है ! परंतु इस बच्चे ने पुराने संस्कार त्यागने से इंकार कर दिया ! और पूंछ सहित पैदा हो गया ! इस हिसाब से यह बच्चा हमारे पूर्वजों का लघु-संस्करण है ! अतः पूज्यनीय है ! यह मेरा दुर्भाग्य है कि पूज्यनीय पूर्वज का जन्म कलकत्ता में हुआ ! मैं ठहरा एक अदना सा व्यंगकार, इतना किराया खर्च करके उस महान आत्मा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने में असमर्थ हूं ! अतः यहीं बैठे-बैठे ही मैं उस महापुरुष को साष्टांग प्रणाम करता हूं !



कह्ते हैं कि हमारे पूर्वजों की भी एक प्यारी-सी, छोटी-सी पूंछ हुआ करती थी ! परंतु मनुष्य तो जन्म से ही इर्ष्यालू है ! जानवरों की लम्बी पून्छ उसे फूटी आंख न भाई ! बस, मनुष्य ने भगवान की व्यवस्था के विरुध आन्दोलन छेड दिया ! नारे लगने लगे ! रैलियां निकलने लगीं क्रमिक भूख-हडताल से लेकर आमरण अनशन तक रखे जाने लगे ! चारों ओर हाहाकार, लूटमार मच गई ! भगवान के (यम) दूतों ने मनुष्य को बहुत समझाया ! परंतु मर्ज बढ्ता गया ज्यों-ज्यों दवा की ! मनुष्यों की मांग थी कि हमारी पूंछ को बडा करो ! कुछ लोगों ने तो जानवरों की पूंछ को विदेशी नागरिकों की संज्ञा दी और उसे काटने की मांग करने लगे ! भगवान भी परेशान ! लोग भूख ह्डताल व यमदूतों के गदा प्रहारों से धडाधड मरने लगे ! न नर्क में जगह बची न स्वर्ग में ! गुस्से से भरकर भगवान ने नर्क व स्वर्ग की तालाबन्दी कर दी ! और आदमी की पूंछ जड से ही काट कर आदमी को जमीन पर धक्का दे दिया ! तब से मनुष्य पूंछ के बिना लुटा-लुटा सा घूम रहा है !



यदि मैं यहां पूंछ के गुणों का बखान करने लगूं तो एक महाकाव्य ही तैयार हो जाय ! आपको याद होगा कि एक बार जब श्री राम चन्द्र जी की धर्मपत्नि “ श्रीमति राम “ का विपक्षी दल के नेता रावण ने अपहरण कर लिया था तो उस समय हनुमान जी ने अपनी पूंछ से ही सारी लंका जला दी थी ! सांप भी मर गया और लाठी भी बच गई ! आज मैं सोचता हूं कि अगर हनुमान जी की पून्छ न होती तो श्रीमति राम का क्या होता ?

जिस प्रकार से मनुष्यों में इज्जत की निशानी मूंछ होती है उसी प्रकार से जानवर भी अपनी पूंछ की बेईज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकते ! एक सिर फिरे आदमी ने एक कुत्ते की घनी व लच्छेदार टेढी पूंछ को सीधा करने का प्रयास किया था ! कहते हैं कि 12 साल बाद भी कुत्ते ने अपने जाति-स्वभाव को नहीं छोडा ! और उसकी पूंछ टेढी ही रही !



जब मेरी मूंछे फूटनी शुरु ही हुई थी तो मेरे दिल में मूंछ पर एक कविता लिखने की सनक सवार हो गई ! उस कविता में मूंछ की तुक पूंछ से भिडाते समय मेरे दिल में अचानक यह ख्याल आया कि आदमी की पूंछ क्यों नहीं होती ? मैंने अपनी पीठ पर रीढ की हड्डी के नीचले सिरे तक हाथ फिरा कर देखा और पून्छ को नदारद पाकर मुझे बहुत दुख हुआ ! बस मैं कागज़ कलम वहीं पर पटक कर दौडा-दौडा अपने पिता जी के पास गया और उन से आदमी की पूंछ न होने की शिकायत की ! पिता जी ने दूसरे ही दिन मेरी शादी कर दी ! यानि बाकायदा मेरी पूंछ मेरे पीछे चिपक गई ! अब यह पूंछ इतनी लम्बी हो गई है कि मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो गया है ! और घर में केवल पूंछ ही पूंछ दिखाई देती है ! अब मैं इस बढी हूई पूंछ से इतना परेशान हूं कि इसको काटने के तरह-तरह के उपाय सोचता रहता हूं परंतु यह बढती ही जाती है ! सोचता हूं बिना पूंछ के ही ठीक था !