R K KHURANA

Saturday, October 9, 2010

आज़ादी के निशान

आज़ादी के निशान


भुखमरी मंहगाई रिश्वत बलात्कार आतंकवाद

सभी दरवाजे लिए हाथ में मैं मकान ढून्ढ रहा हूँ !



गुनाहगार ही गुनाहगार हैं अब इस देश में

फाँसी के लिए जल्लाद और मचान ढून्ढ रहा हूँ !



हमने जन्मा भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार ने हमें

कब से इस समस्या का समाधान ढून्ढ रहा हूँ !



बेबस निरीह अबला बलात्कार की शिकार युवतियां

गले में अटकी है चीख सुनने वाले कान ढून्ढ रहा हूँ !



सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में उठती नहीं,

पैसे सत्ता कुर्सियों में ही अपना इमान ढून्ढ रहा हूँ !



बहुत सालों से सुनता आ रहा हूँ कि देश आज़ाद है

कहाँ है आज़ादी मैं आज़ादी के निशान ढून्ढ रहा हूँ



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कच्चे धागे

कच्चे धागे

मुझे मेडिकल में एडमिशन मिल गया था ! मैं बहुत खुश थी ! सभी बहुत खुश थे ! एक छोटे से कस्बे से बडे शहर में आना बहुत अच्छा लग रहा था ! हालांकि शहर में मामा-मामी थे ! उनके बेटे यानि बिट्टू भईया थे ! भाभी थी ! बच्चे थे ! परंतु पढाई की वजह से मैंने होस्टल में ही रहना ज्यादा अच्छा समझा ! इससे रिश्तेदारी में प्यार भी बना रहता है और किसी को कुछ कहने का मौका भी नहीं मिलता ! बीच बीच में मैं समय निकाल कर मामा-मामी और भाभी-बच्चों से मिल आती थी ! बिट्टू भईया का बहुत अच्छा गारमेंट का शो-रूम था ! अच्छा बिज़नेस था ! लेकिन उनसे कभी भेंट नहीं हो पाती थी ! पक्के बिज़नेसमैन बन गए थे ! पैसे के पीर ! जब भी मैं उनके घर जाती तो भईया अपने शो-रूम में होते ! रात को घर लेट ही आते थे ! उनका बस चलता तो शायद वो रात को भी वहीं सो जाते ! इतवार को और छुट्टी वाले दिन तो उनके शो-रूम में बहुत रश होता था ! सो उनका हाल-चाल भाभी से ही पूछ लेती !

हम तीन बहनें ही हैं ! भाई कोई है नहीं ! मैं सबसे छोटी हूं ! सभी मुझे बहुत प्यार करते हैं ! मामा-मामी के साथ बिट्टू भईया भी कभी कभार हमारे यहां हमें मिलने आते रह्ते थे ! परंतु जब से उन्होंने शो-रूम खोला है उनका आना जाना लगभग न के बराबर ही हो गया था ! दोनो बडी बहने दुबली-पतली थीं ! मेरा शरीर थोडा भरा हुआ था ! हालांकि मैं इतनी मोटी नही थी पर बिट्टू भईया मुझे “मोटो” कहकर चिढाते थे ! मैं भी उनको “सुकडू” कहकर अपना बदला चुका लेती थी ! वो जब भी हमारे यहां आते तो मुझे बहुत प्यार करते थे ! मेरे लिए हमेशा कोई न कोई उपहार लेकर आते !

छोटा कस्बा था ! सभी एक दूसरे से प्यार से रहते थे ! सभी एक दूसरे को जानते थे तथा दुख सुख में बराबर शरीक होते थे ! भाई की कमी क्या होती है उस समय मालूम न था ! मैं छोटी थी ! मेरे लिए राखी का मतलब आस-पडौस के लडकों को राखी बांध देना और बदले में टाफी-चाकलेट और मिठाई आदि ले लेना भर था ! राखी बांधने के जो पैसे मिलते थे वो मां रख लेती थी ! थोडी सी बडी हुई तो सोचती थी कि अपना भी भाई होना चाहिए था ! फिर भी इस बात को लेकर कभी ज्यादा मलाल नहीं रहा ! हर राखी पर मां या बडी दीदी बिट्टू भईया को राखी डाक से भेज देतीं थीं ! जब भी हमारे घर से कोई कभी उनके घर जाता या उनके घर से कोई हमारे घर आता तो हमे राखी बांधने (डाक से भेजने) के बदले सूट या कोई अन्य उपहार मिल जाता था !

घर से कभी इस प्रकार इतने दिनो के लिए दूर नहीं रही थी ! पहली बार होस्टल में आई थी ! होस्टल की जिन्दगी भी एक अलग तरह की जिन्दगी होती है ! अपने घर से दूर ! मां-बाप से दूर ! अपनी निजी दुनिया से दूर ! जहां आपको अपने सभी काम खुद ही करने पडते हैं ! अपना ख्याल भी खुद ही रखना पडता है ! अपना भला-बुरा भी खुद ही समझना पडता है ! सम्भल गये तो ठीक वरना बिगडने में कोई देर नही लगती ! जहां आप अपने दिल की हर बात हर किसी से नहीं कह सकते ! सहेलियां थीं ! रूम-मेट भी थी ! लेकिन फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं न कहीं कोई कमी है ! कोई चीज़ ऐसी है जो होनी चाहिए थी लेकिन है नहीं ! कोई अपना नहीं था ! कभी कभी दिल बहुत ही उदास हो जाता था ! दिल करता था सब कुछ छोड कर इस पिंजरे तो तोड कर भाग जाऊं ! फिर डाक्टर बनने के सपने के बारे में सोच कर मन मसोस कर रह जाती !

राखी का त्यौहार नज़दीक आ रहा था ! मां हर बार मुझे फोन पर बिट्टू भईया को राखी बांधने की हिदायत देना नहीं भूलती थीं ! साथ में उनकी मनपसन्द मिठाई ले जाने की ताकीद भी रहती थी ! मैं पहली बार बिट्टू भईया को राखी बांधने जा रही थी ! मैं पहली बार ‘अपने’ भाई को राखी बांधने जा रही थी ! मैं बहुत खुश थी ! बहुत उत्साहित थी ! जैसे कोई प्रतियोगिता जीतने जा रही होंऊ ! मन ही मन कई मनसूबे बनाती ! राखी कहां से लेनी है ! किस तरह की लेनी है ! उस पर क्या लगा होना चाहिए ! यदि कुछ लिखा हो तो क्या लिखा होना चाहिए ! फिर मिठाई में क्या लेना है ! मोतीचूर के लड्डू ! नहीं ! सोहन पापडी ! नहीं ! बंगाली रसगुल्ले ! नहीं…नहीं…नहीं ! काजू की बर्फी ! काजू… की… बर्फी ! हां…यह…. ठीक… है ! काजू की बर्फी ही ठीक रहेगी ! लेकिन काजू की बर्फी कहां से ली जाय ! यहां सबसे अच्छी दुकान कौन सी है ? किससे पूंछू ? मामी के घर में से तो किसी से भी नही पूछ्ना है ! उनको बताये बिना ही सरपराईज़ देना है भईया को ! बस बर्फी का डिब्बा और राखी का पैकेट लेकर चुन्नी से अपना सिर ढककर चुपचाप भईया के पास जाकर बैठ जाउंगी ! पहले प्लेट में थोडा सा पानी लेकर सिन्दूर और चावल को अच्छी तरह से मिक्स करके भईया को बडा सा तिलक लगाउंगी ! फिर सुन्दर सी राखी बांधूगी ! उसके साथ ही रेशम की डोरी बांध दूंगी ! भईया की लम्बी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करूंगी ! उसके बाद डिब्बे में से बर्फी निकाल कर इकट्ठे चार-पांच टुकडियां भईया के मुंह में ठूस दूंगी !

राखी के एक दिन पहले क्लास से दो पीरियड मिस करके बाज़ार गई ! कई दुकाने घूमी ! कई तरह की राखियां देखी ! सबसे अच्छी लेने के चक्कर में तीन-चार घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला ! बहुत माथा पच्ची करने के बाद एक सुन्दर सी राखी खरीदी ! साथ में डिज़ाईनदार सफेद नगों वाली रेशम की डोरी ली ! सिन्दूर आदि की रेडीमेड प्लेट ली ! अपने रूम में पहुंची तो वारडन मैम का बुलावा आ गया ! इतनी देर होस्टल से गायब रहने के लिए खूब डांट पडी !

राखी खरीद कर मैं बहुत खुश थी ! कई बार लिफाफे में से निकाल कर निहार चुकी थी ! फिर निकालती फिर देखती और सहला कर रख देती ! मन भरता ही नहीं था ! कितनी सुन्दर लगेगी भईया की कलाई पर यह राखी ! कितने मजबूत होते हैं ये कच्चे धागे ! कितना प्यार, कितना विश्वास झलकता है इन रीति-रिवाजों में ! बहन-भाई के प्यार को दर्शाने वाला यह त्यौहार किसी ने बहुत सोच समझ कर बनाया होगा ! काजू की बर्फी कल सुबह ही लेनी पडेगी ! रात को लेकर रख ही नहीं सकती थी ! यह जो होने वाली डाक्टरनियां हैं न मेरी सहेलियां, इनको पता चल गया न कि मिठाई आई है तो पांच मिनट में पूरा डिब्बा खत्म ! भूखी हैं बिलकुल ! कल सुबह जल्दी उठना पडेगा ! नहा-धोकर राखी वगैरह लेकर काजू की बर्फी अच्छे से पैक करा के फिर बिट्टू भईया के घर जाऊंगी ! बिलकुल सुच्चे मुंह ! बिना कुछ खाये-पीये ! कहते हैं कि बहन को सुच्चे मुंह भाई को राखी बांधनी चाहिए ! सच्चे मन से भगवान से भाई की लम्बी उम्र की दुआ करनी चाहिए !

रात को बार बार नींद खुल जाती थी ! ठीक से सो ही नही पाई ! चिंता थी कि कहीं देर न हो जाय ! उठ उठ कर घडी देखती ! सुबह पांच बजे के बाद ऐसी घुरकी लगी कि सात बजे आंख खुली ! जल्दी जल्दी सब काम निपटाये ! नहा-धोकर नया सूट पहना ! निकलते निकलते नौ बज गए ! बहुत देर हो गई थी ! अभी बर्फी लेनी बाकी थी ! बाहर आई तो चारों तरफ भीड ही भीड थी ! कहीं कारों-बसों की चिल्ल पों तो कहीं स्कूटर-मोटर साईकिल की तेज रफ्तारी ! सभी लदे पडे थे ! सभी भाग रहे थे ! किसी के पास बात करने का भी समय नही था ! कोई बस, कोई रिक्शा, कोई आटो खाली नहीं था ! बहुत देर तक इंतज़ार करती रही ! बडी मुश्किल से एक टैक्सी मिली ! सुन्दर डिज़ाईन वाले डिब्बे में बर्फी का गिफ्ट पैक बनवाया ! भईया के घर जाने के लिए भागी भागी बस स्टाप पर आ गई ! जो भी बस आती सवारियों से लदी-पदी आती ! यहां से तो उनका घर बहुत दूर है ! टैक्सी तो बहुत मंहगी पडेगी ! लेकिन कोई टैक्सी भी दिखाई नहीं दे रही ! सौभाग्य से एक बस स्टाप पर आकर रूकी ! बडी मुश्किल से पायदान पर पैर रखने की जगह बना पाई ! बस से उतर कर दौडती-दौडती मामी के घर पंहुची ! घर पहुंच कर पता लगा कि भईया तो कब के शो-रूम में चले गए हैं ! सारी मेहनत, सारी दौडधूप, सारी तैयारियां बेकार ! लेकिन नहीं आज तो राखी है ! फिर तो यह त्यौहार एक साल बाद ही आयेगा ! और मैं तो भईया को पहली बार राखी बांधने जा रही थी ! अपने भईया को ! कोई बात नहीं ! मैं शो-रूम में जाकर ही राखी बांध दूंगी ! लेकिन शो-रूम तक जाने में लगभग दो घंटे लग जायेंगें ! दो बसे बदलनी पडेंगीं ! परवाह नहीं ! उठ कर चल दी ! मामी और भाभी रोकते-बुलाते रहे ! पर मैं न रूकी ! रूकी तो भैया के शो-रूम में जाकर !

शो-रूम में पहुंचते पहुंचते एक बज गया था ! सुबह से कुछ खाया पीया भी नहीं था ! भूख और भागदौड के कारण जान निकल रही थी ! लेकिन मैं अपनी मंज़िल पर पहुंच गई थी ! भईया को राखी बांध कर फिर आराम से खाऊंगी ! प्यास भी बहुत लगी हुई थी ! भईया अपने आप ही कुछ खिला-पिला देंगें ! शो-रूम में रश था ! भईया और मामा जी काउंटर पर थे ! भईया बिल बना रहे थे मामा जी पैसे ले रहे थे ! सभी सेल्समैन अपने अपने काम में व्यस्त थे !

मैं मिठाई का डिब्बा और राखी लेकर भईया के पास काउंटर पर चली गई ! भईया ने एक बार मेरी तरफ देखा ! फिर काम में लग गए ! मैं वहीं पर खडी इंतज़ार करती रही ! दस-पंद्रह मिनट तक इंतज़ार करने के बाद मैंने भईया से कहा – “सारी भईया, देर हो गई ! असल में मैं पहले आपके घर गई थी ! लेकिन आप यहां आ गए थे ! बसों के धक्के खाते खाते आपके पास पहुंची हूं ! मैंने सुबह से कुछ खाया भी नहीं है ! आप थोडा टाईम निकाल कर पहले राखी बंधवा लो !”

भईया ने एक बार नज़र उठा कर मेरी ओर देखा ! हाथ से रूकने का इशारा किया और फिर बिल बनाने लग गए ! बिल बनाकर मेरी ओर मुडे ! काउंटर पर रखा मेरे द्वारा लाया गया बर्फी का डिब्बा और राखी का पैकेट उठाकर काउंटर के नीचे एक तरफ रख दिया ! गल्ले में से कुछ सौ-सौ के नोट निकाल कर मेरी ओर बढा दिए ! मैं अवाक भईया को देखने लगी ! मेरा माथा घूम गया ! मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं ! मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या कंहू ! मेरे आंसू बेकाबू हो रहे थे ! मेरा दिमाग काम ही नहीं कर रहा था ! मैं वहां पर खडी नहीं रह पा रही थी ! मैं एकदम से बाहर की ओर भागी ! मुझे नहीं पता कि मैं होस्टल कैसे पहुंची ! बस अपने कमरे में आकर बिस्तर में मुंह गडा कर बहुत रोई……बहुत रोई…..रोती रही…..रोती रही !



इस बात को आज 27 साल हो गए हैं ! उसके बाद मैं किसी की कलाई पर यह “कच्चे धागे” बांधने का साहस नहीं जुटा पाई !



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Tuesday, April 6, 2010

अभी तो मैं जवान हूं

अभी तो मैं जवान हूं








पता नहीं आजकल के छोकरों को क्या हो गया है ? बूढों को कुछ समझते ही नहीं ! एक जमाना था कि लोग बुजुर्गों को ढोल में बन्द करके साथ ले जाते थे ! पहले लोग कहा करते थे कि सयाने आदमी की बात भी सयानी होती है ! प्रत्येक कार्य को करने से पहले दस बार बूढों की सलाह ली जाती थी ! किसी बुजुर्ग के कहे गये वाक्य को लोग अमरित समझ कर पी जाते थे ! क्या मजाल की बडे-बूढों की इच्छा के विरुध कोइ पत्ता भी हिल जाय !







आखिर इन युवकों को हमने ही तो पैदा किया है ! हमने ही तो पाला-पोसा और युवा कहलाने योग्य बडा किया है ! क्या हुआ जो जरा सी हमारी कमर टेढी हो गई ? क्या हुआ अगर हमारे बाल सफेद हो गये, आंखे अन्दर को धंस गई और गाल पिचक गये ? दिल तो जवान है ! उदय भानु हंस ने भी कहा है –



तुम प्रेम को जीवन की निशानी समझो,



जो बह्ता रहे उसको ही पानी समझो !



जब ह्रदय बुढापे में भी रंगीन रहे,



तुम ऐसे बुढापे को जवानी समझो !!







वैसे भी हम जवानों से किसी बात में कम नहीं ! इन लोगों से अधिक स्कैन्ड्ल करने का हमें अनुभव है ! आज कल के इन छ्छुन्दर मुंहे लोगों से अधिक हमने सुरा व सुन्दरी के साथ रातें रंगीन की हैं ! लोगों से ली गई रिश्वत से स्विट्ज़रलैंड के बैंको में हमारे खाते अभी तक चल रहे हैं ! परंतु इन छोकरों को तो इन कुकर्मों को दबाने व छिपाने की भी अकल नहीं है ! हम भी यह सब काम करते थे पर क्या मज़ाल कि किसी को कानो-कान खबर भी हो जाए ! क्योंकि –







है पाप अगर पाप को प्रत्यक्श करे,



परदे में किया गया पाप कोई पाप नहीं !







परंतु आजकल तो हवा ही उल्टी चल गई है ! हर जगह युवकों की ही बात हो रही है ! चुनाव में टिकट दो तो युवा को ! मंत्री पद दो तो युवा को ! नेत्रित्व दो तो युवा को ! युवा ना हो गये मथुरा के पेडे हो गये ! लेकिन इन युवाओं को “युवा-ह्रदय और युवा-सम्राट की उपाधि देकर हमीं ने बिगाडा है ! जब यह युवा हवाई-जहाज पर चढने लगते हैं तो बूढे युवकों के पैरों की तरफ ताकते नीचे खडे हो जाते हैं कि कब इन युवायों की चप्पल गिरे और कब हम दौड कर उसे उठाकर पकडाने का सौभाग्य प्राप्त करें ! हम बुढों ने ही इन्हें बिगाडा है !







देर आयद दुरस्त आयद ! अब हम भी सम्भल गये हैं ! हमने भी घाट-घाट का पानी पिया है ! हमने जीवन के 70 पतझड देखे हैं ! जय प्रकाश नारायण भी तो 70 साल के युवा थे ! जिन्होंने सारे युवाओं को चूहों की तरह अपने पीछे लगा लिया था ! अतह -



बच के वार करना मुझ पर मैं भी तीर कमान हूं ,



सत्तर का हुआ तो क्या हुआ, अभी तो मैं जवान हूं !

कस्टमर फीडबैक

कस्टमर फीडबैक




आजकल मार्केटिंग का जमाना है ! जीवन के हर क्षेत्र में मार्केटिंग है ! यहाँ तक कि प्रेम और विवाह के मामले में भी ! आईये, एक स्तिथि कि कल्पना करते हैं ! मान लीजिये आप पार्टी में एक खूबसूरत युवती को देखते हैं ! इसके बाद मार्केटिंग कि शब्दावली में आप क्या-क्या कर सकते हैं ! –



१. आप उसके पास जाकर कहते हैं, “मैं बहुत अमीर हूँ, मुझसे शादी करोगी ?

यह सीधी मार्केटिंग है !

२. आपका एक दोस्त उसके पास जाकर आपकी ओर इशारा करते हुए कहता है कि “वो बहुत अमीर है उससे शादी कर लो !

यह विज्ञापन है !

३. आप उस युवती के पास जाते हैं और उसका फ़ोन नंबर लेकर अगली सुबह उसे फ़ोन करते हैं -

“हाई, मैं एक अमीर आदमी हूँ, मुझसे शादी करोगी ?”

यह टेल्ली मार्केटिंग है !

४. आप उसके पास जाकर उसके बालों की तारीफ करते हैं, उसके लिए कुर्सी खींचते हैं, और कहते हैं, :

बाई द वे मैं एक अमीर शख्स हूँ, मुझसे शादी करोगी ?

यह पब्लिक रिलेशन है !

५. वह युवती ही आपके पास आकर कहती है, ” आप वही अमीर आदमी हैं न, जिनके बड़े चर्चे हैं !

यह ब्रांड वैल्यू है !

६. आप उस युवती से सीधे पूछते हैं, “मैं बहुत अमीर हूँ, क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?” और वह आपकी गाल पर एक तमाचा जड़ देती है !

यह कस्टमर फीडबैक है !



दैनिक भास्कर में पढ़ा ! स्वादिस्ट (अच्छा) लगा ! सोचा ब्लॉगर-भईयों को भी परोस दूं !

क्षण बोध

क्षण बोध


जब मैं दूसरी कक्षा में हुआ तो मेरे भाई साह्ब ने पांचवीं पास कर ली थी ! मुझे आष्चर्य-सा होता था कि यह इतनी किताबें किस प्रकार से पढ लेते हैं ! और पास भी हो जाते हैं ! प्रायः मैं भाई साहब से पूछा करता था –“ भईया, आप इतनी किताबें कैसे पढ लेते हो ?” तो भाई साहब बडे प्यार से कहते, “घबरा मत जब तू बडा होगा तो यही किताबें पढा करेगा !”

मैंने पांचवीं कक्षा में सबसे अधिक अंक लिये ! उस समय मैं मैट्रिक करने वालों को जादूगर समझा करता था ! एक दिन मैंने एक त्रितिय श्रेणी मैट्रिक पास पडोसी से पूछा – “आपने दसवीं कैसे पास करली ? इसके लिये तो बहुत पढना पडता होगा ?”

“और नहीं तो क्या ?” पडोसी ने इतराते हुये जवाब दिया !

मैट्रिक मैने खेल्-खेल में पास कर ली ! मैंने एक सज्जन से इसका सगर्व जिक्र किया ! पहले तो वो मुझे एकटक इस प्रकार से देखते रहे जैसे कि मेरे दिमाग की कोइ चूल ढीली हो गई है ! फिर कदाचित मेरी बुद्धी पर तरस खाकर बोले – “ तो तुमने कौन सा तीर मार लिया ? आजकल मैट्रिक पास की वैल्यू ही क्या है ?”

मैने आव देखा न ताव, झट से कालेज में प्रवेश ले लिया ! तब मैं भी यह समझने लगा था कि वास्तव में मैट्रिक में कुछ नहीं था ! अब बी. ऐ. करेंगे तो पता चलेगा !



बी. ऐ. का प्रथम श्रेणी का प्रमाण पत्र मिलने के बाद मेरे दिल में यह विश्वास हो गया कि अब मुझे अपने माता-पिता पर बोझ बनने की आवश्यकता नहीं ! परंतु यह हवा महल भी एक इंटरव्यू में एक ही वाक्य से ढह गया ! “बी.ऐ. पास तो आजकल धक्के खाते फिर रहे हैं ! हां यदि तुम एम.ऐ., बी.एड. होते तो शायद बात बन जाती ! “

मैंने एम.ऐ. और बी.एड. का लेबल भी लगा लिया ! नौकरी के लिये चक्कर लगाते-लगाते जूते के निचले भाग में सूराख हो जाने के कारण उसमें से सारी दुनिया नज़र आती है ! आज टेबल पर सारी डिग्रीयां बिखरी पडी हैं ! जब पीछे मुड कर देखता हूं तो सोचता हूं कि इस पढाई में कुछ भी नहीं था ! आज मुझे दु:ख हो रहा है कि अपने जीवन के इतने बहुमूल्य वर्ष ऐसे ही गंवा दिये ! यदि एम.ऐ., बी.एड. का ठप्पा न लगा होता तो कम से कम बूट पालिश करके या रिक्शा चला कर अपने पेट की आग तो शांत कर सकता था !

अभी तो मैं जवान हूं

अभी तो मैं जवान हूं



पता नहीं आजकल के छोकरों को क्या हो गया है ? बूढों को कुछ समझते ही नहीं ! एक जमाना था कि लोग बुजुर्गों को ढोल में बन्द करके साथ ले जाते थे ! पहले लोग कहा करते थे कि सयाने आदमी की बात भी सयानी होती है ! प्रत्येक कार्य को करने से पहले दस बार बूढों की सलाह ली जाती थी ! किसी बुजुर्ग के कहे गये वाक्य को लोग अमरित समझ कर पी जाते थे ! क्या मजाल की बडे-बूढों की इच्छा के विरुध कोइ पत्ता भी हिल जाय !



आखिर इन युवकों को हमने ही तो पैदा किया है ! हमने ही तो पाला-पोसा और युवा कहलाने योग्य बडा किया है ! क्या हुआ जो जरा सी हमारी कमर टेढी हो गई ? क्या हुआ अगर हमारे बाल सफेद हो गये, आंखे अन्दर को धंस गई और गाल पिचक गये ? दिल तो जवान है ! उदय भानु हंस ने भी कहा है -- तुम प्रेम को जीवन की निशानी समझो, जो बह्ता रहे उसको ही पानी समझो ! जब ह्रदय बुढापे में भी रंगीन रहे, तुम ऐसे बुढापे को जवानी समझो !!



वैसे भी हम जवानों से किसी बात में कम नहीं ! इन लोगों से अधिक स्कैन्ड्ल करने का हमें अनुभव है ! आज कल के इन छ्छुन्दर मुंहे लोगों से अधिक हमने सुरा व सुन्दरी के साथ रातें रंगीन की हैं ! लोगों से ली गई रिश्वत से स्विट्ज़रलैंड के बैंको में हमारे खाते अभी तक चल रहे हैं ! परंतु इन छोकरों को तो इन कुकर्मों को दबाने व छिपाने की भी अकल नहीं है ! हम भी यह सब काम करते थे पर क्या मज़ाल कि किसी को कानो-कान खबर भी हो जाए ! क्योंकि --

है पाप अगर पाप को प्रत्यक्श करे, परदे में किया गया पाप कोई पाप नहीं !

परंतु आजकल तो हवा ही उल्टी चल गई है ! हर जगह युवकों की ही बात हो रही है ! चुनाव में टिकट दो तो युवा को ! मंत्री पद दो तो युवा को ! नेत्रित्व दो तो युवा को ! युवा ना हो गये मथुरा के पेडे हो गये ! लेकिन इन युवाओं को “युवा-ह्रदय और युवा-सम्राट की उपाधि देकर हमीं ने बिगाडा है ! जब यह युवा हवाई-जहाज पर चढने लगते हैं तो बूढे युवकों के पैरों की तरफ ताकते नीचे खडे हो जाते हैं कि कब इन युवायों की चप्पल गिरे और कब हम दौड कर उसे उठाकर पकडाने का सौभाग्य प्राप्त करें ! हम बुढों ने ही इन्हें बिगाडा है !



देर आयद दुरस्त आयद ! अब हम भी सम्भल गये हैं ! हमने भी घाट-घाट का पानी पिया है ! हमने जीवन के 70 पतझड देखे हैं ! जय प्रकाश नारायण भी तो 70 साल के युवा थे ! जिन्होंने सारे युवाओं को चूहों की तरह अपने पीछे लगा लिया था ! अतह - बच के वार करना मुझ पर मैं भी तीर कमान हूं , सत्तर का हुआ तो क्या हुआ, अभी तो मैं जवान हूं !

आदमी की पूंछ

आदमी की पूंछ


जब से मैने सुना है कि कलकत्ता के राम कृष्ण मिशन अस्पताल में एक पूंछ वाले बच्चे ने जन्म लिया है तब से मैं बहुत खुश हूं ! हमारे पूर्वजों की भी पूंछ हुआ करती थी ! डाक्टरों का कहना है कि जब एक-डेढ महीने का भ्रूण पेट में होता है तो उसकी भी पूंछ होती है ! और नौ महीने बीतते-बीतते वह पूंछ समाप्त हो जाती है ! परंतु इस बच्चे ने पुराने संस्कार त्यागने से इंकार कर दिया ! और पूंछ सहित पैदा हो गया ! इस हिसाब से यह बच्चा हमारे पूर्वजों का लघु-संस्करण है ! अतः पूज्यनीय है ! यह मेरा दुर्भाग्य है कि पूज्यनीय पूर्वज का जन्म कलकत्ता में हुआ ! मैं ठहरा एक अदना सा व्यंगकार, इतना किराया खर्च करके उस महान आत्मा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करने में असमर्थ हूं ! अतः यहीं बैठे-बैठे ही मैं उस महापुरुष को साष्टांग प्रणाम करता हूं !



कह्ते हैं कि हमारे पूर्वजों की भी एक प्यारी-सी, छोटी-सी पूंछ हुआ करती थी ! परंतु मनुष्य तो जन्म से ही इर्ष्यालू है ! जानवरों की लम्बी पून्छ उसे फूटी आंख न भाई ! बस, मनुष्य ने भगवान की व्यवस्था के विरुध आन्दोलन छेड दिया ! नारे लगने लगे ! रैलियां निकलने लगीं क्रमिक भूख-हडताल से लेकर आमरण अनशन तक रखे जाने लगे ! चारों ओर हाहाकार, लूटमार मच गई ! भगवान के (यम) दूतों ने मनुष्य को बहुत समझाया ! परंतु मर्ज बढ्ता गया ज्यों-ज्यों दवा की ! मनुष्यों की मांग थी कि हमारी पूंछ को बडा करो ! कुछ लोगों ने तो जानवरों की पूंछ को विदेशी नागरिकों की संज्ञा दी और उसे काटने की मांग करने लगे ! भगवान भी परेशान ! लोग भूख ह्डताल व यमदूतों के गदा प्रहारों से धडाधड मरने लगे ! न नर्क में जगह बची न स्वर्ग में ! गुस्से से भरकर भगवान ने नर्क व स्वर्ग की तालाबन्दी कर दी ! और आदमी की पूंछ जड से ही काट कर आदमी को जमीन पर धक्का दे दिया ! तब से मनुष्य पूंछ के बिना लुटा-लुटा सा घूम रहा है !



यदि मैं यहां पूंछ के गुणों का बखान करने लगूं तो एक महाकाव्य ही तैयार हो जाय ! आपको याद होगा कि एक बार जब श्री राम चन्द्र जी की धर्मपत्नि “ श्रीमति राम “ का विपक्षी दल के नेता रावण ने अपहरण कर लिया था तो उस समय हनुमान जी ने अपनी पूंछ से ही सारी लंका जला दी थी ! सांप भी मर गया और लाठी भी बच गई ! आज मैं सोचता हूं कि अगर हनुमान जी की पून्छ न होती तो श्रीमति राम का क्या होता ?

जिस प्रकार से मनुष्यों में इज्जत की निशानी मूंछ होती है उसी प्रकार से जानवर भी अपनी पूंछ की बेईज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकते ! एक सिर फिरे आदमी ने एक कुत्ते की घनी व लच्छेदार टेढी पूंछ को सीधा करने का प्रयास किया था ! कहते हैं कि 12 साल बाद भी कुत्ते ने अपने जाति-स्वभाव को नहीं छोडा ! और उसकी पूंछ टेढी ही रही !



जब मेरी मूंछे फूटनी शुरु ही हुई थी तो मेरे दिल में मूंछ पर एक कविता लिखने की सनक सवार हो गई ! उस कविता में मूंछ की तुक पूंछ से भिडाते समय मेरे दिल में अचानक यह ख्याल आया कि आदमी की पूंछ क्यों नहीं होती ? मैंने अपनी पीठ पर रीढ की हड्डी के नीचले सिरे तक हाथ फिरा कर देखा और पून्छ को नदारद पाकर मुझे बहुत दुख हुआ ! बस मैं कागज़ कलम वहीं पर पटक कर दौडा-दौडा अपने पिता जी के पास गया और उन से आदमी की पूंछ न होने की शिकायत की ! पिता जी ने दूसरे ही दिन मेरी शादी कर दी ! यानि बाकायदा मेरी पूंछ मेरे पीछे चिपक गई ! अब यह पूंछ इतनी लम्बी हो गई है कि मेरा अस्तित्व ही समाप्त हो गया है ! और घर में केवल पूंछ ही पूंछ दिखाई देती है ! अब मैं इस बढी हूई पूंछ से इतना परेशान हूं कि इसको काटने के तरह-तरह के उपाय सोचता रहता हूं परंतु यह बढती ही जाती है ! सोचता हूं बिना पूंछ के ही ठीक था !

Friday, March 12, 2010

आहार

हमारे एक कवि  मित्र
अपने दिमाग की उपज पर
इतरा रहे हैं 1

वे कहते हैं --
हम मेहनत  की
कमाई खा रहे हैं 1

दिन मैं कई होटलों के
चक्कर लगते हैं 1

उनसे आहार का
नमूना मांग लातें हैं 1

इकठा किये गए
नमूनों को ही
आहार बना रहे हैं.

राम कृष्ण खुराना
ए - 426 , मॉडल town  extension
लुधिआना
(पंजाब)
भारत

मेरी बातें: सार्वभौमिक (युनिवर्सल) भाषा#comment-form

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आपने बिलकुल ठीक कहा है.  मैं भी यह मानता हूँ की भाषा के लिए आपस में झगड़ा नहीं होना चाहिए.  ससब जगह एक ही भाषा होनी चाहिए जिससे किसी को भी कोई परेशानी न हो .  एक भाषा रख कर हम दुनिया जीत सकते हैं.  भाषा की विभिनता ने हमें पंगु बना दिया है.  हम जब मद्रास में जाते हैं तो वहां पर केवल इंग्लिश को ही तरजीह दी जाती है .  हिंदी बोलने वाले को हेय दृष्टि से देखा जाता है.  जो की समाज के लिए घातक है 1  वहां पर सभी बोर्ड इंग्लिश या मद्रासी मैं ही लिखे जाते हैं.  बहुत पहले कुछ राजनीतिज्ञ कारणों के चलते हिंदी को हटा दिया गया .  जो की एक दुर्भाग्यपुरण कम था
एक भाषा एक संसार का सपना कब सच होगा पता नहीं.

Tuesday, February 23, 2010

Prashan

मैं हिंदी में लिखता हूँ तथा अपनी रचनाएँ हिंदी में भेजना चाहता हूँ.  क्या मैं अपनी रचनाएँ कॉपी पेस्ट भी कर सकता हूँ   कृपया बताएं
धन्यवाद्
रा  करी  खुराना