R K KHURANA

Saturday, October 9, 2010

आज़ादी के निशान

आज़ादी के निशान


भुखमरी मंहगाई रिश्वत बलात्कार आतंकवाद

सभी दरवाजे लिए हाथ में मैं मकान ढून्ढ रहा हूँ !



गुनाहगार ही गुनाहगार हैं अब इस देश में

फाँसी के लिए जल्लाद और मचान ढून्ढ रहा हूँ !



हमने जन्मा भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचार ने हमें

कब से इस समस्या का समाधान ढून्ढ रहा हूँ !



बेबस निरीह अबला बलात्कार की शिकार युवतियां

गले में अटकी है चीख सुनने वाले कान ढून्ढ रहा हूँ !



सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में उठती नहीं,

पैसे सत्ता कुर्सियों में ही अपना इमान ढून्ढ रहा हूँ !



बहुत सालों से सुनता आ रहा हूँ कि देश आज़ाद है

कहाँ है आज़ादी मैं आज़ादी के निशान ढून्ढ रहा हूँ



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